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मटरगश्त

पहली पहली याद में ही आंख मारी थी उस्ने
कभी जुल्फों पे हाथ फेरे मेरे
तो कभी टॉफ़ी खा ली थी उसे |

प्यारी सी थी वो, गुलों के गीत गति थी
हंसते हंसते अपनी बहनो के पास मंडराती थी,
कभी मौसम आए, तो छोटे घर में चाय भी पिलाती थी|

दूर दूर तक कोई ना था,
तब साथ हमने दो पल बिताये,
मेरे लिए उसने रेत बहा दी,
और हमने दो पल दो गेट लगाये|

मुझे नादानी में बिछड़ने से बचाया,
वो रोके कही की ये घर नहीं है,
मैं वो दर्द समय पे समझ न पाया|

नमकीन है वो जब कहती है,
खुद ले आएगा|
नर्म है वो जब कहती है,
बिया आयेगा|

अब चल दी वो किसी रूह के रास्ते,
जहाँ मेरी राह कभी न कटे,
अब चलते चलते सोचते हैं,
उस राह पे भी वो मटरगश्त रहे|

कहीं चले जाए , कितनी भी याद आए,
उसे मम्मा बोलने में ऐसी ख़ुशी आये ,
पूरा कर नहीं सकता बयान|

बात ये है की,
कुछ कविताएं,
मेरे हाथों की बजाये ,
उसके हाथो से ज्यादा सज जाएं|


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