याद तो वह आते हैं ,
जो थे और अब नहीं रहे |
ये पता नहीं क्या है,
न थी और न जाती है |
सूरज पकड़ने चला हूँ मैं ,
हाथ तोह कभी लगा नहीं
थक कर सो गया था मैं ,
जगा तोह ये ढला नहीं |
जितनी इच्छा साथ चलने की है ,
उतनी ये भी की ढल जाए |
स्वपनहीं होकर सो सकूं मै,
जागूँ तोह नया सवेरा आए |